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ABC Club आपसी भाईचारा क्लब

आपसी भाईचारा क्लब(ABC)

1.     इस क्लब की संरचना बड़ी विचित्र है l इसकी रचना के पीछे हमारा अपने समाज के प्रति प्रेम व समर्पण छिपा हुआ है l अपने लोगों को एक दुसरे के पास लाने का, अपनापन दिखाने का, व्यापार सफल करने का, अपने भाई का रोजगार बढ़ाने का यह एक ऐसा क्लब है जिससे आपसी भाईचारा बढ़ता है l इसी लिए इस क्लब का नाम  आपसी भाईचारा क्लब (ABC) है l

 

2.    इस क्लब के बनने वाले सदस्य को यह संकल्प करना होगा कि   अगर वह सामान अपने एक भाई की दुकान पर नहीं मिलता है तो वह सामान दुसरे भाई की दुकान से खरीदूंगा और अगर दुसरे भाई की दुकान से भी नहीं मिलता है वह सामान तीसरे भाई की दूकान से खरीदूंगा l अगर जरूरत का वह सामान अपने किसी ऐसे भाई की दुकान पर मिलता  है, जो या तो थोड़ी दूर पड़ती हैया वह थोड़ी लेट खुलती है, तो भी हमने पूरी कोशिश करनी है कि वह सामान अपने भाई की दूकान से ही खरीदा जाए, क्योंकि उसने भी अपने रोजगार के लिए दुकान ले रखी है, माल भर  रखा है, सारा दिन ग्राहक की इंतजार भीकरता है, भगवान से बारम्बार  यह प्रार्थना भी करता है कि उसकी दूकान पर ग्राहक आए, मालबिके व उसके परिवार का पेट गुजारा चले l

 

3.     सोचने का विषय यह है कि अगर हम ही अपने भाई की दूकान से सामान नहीं खरीदेंगे तो दूसरा कौन खरीदेगा ! अगर हम ही अपने भाई से सामान लेने की जरूरत नहीं समझेंगे तो और कौन समझेगाl यदिआप द्वारा अपने एक भाई की दूकान से सामान खरीदने मेंकोई हिच है, कोई शर्म लगती है, दूकान दूर पड़ती है या आप की जरूरत के हिसाब से सामान नहीं है तो अपने किसी दुसरे भाई की दूकान से खरीद लो, किसी अपने से  तो खरीद लो l  आप को तो सामान खरीदना ही है, पैसे भी देने हैं तो अपने भाई की दूकान से क्यों नहीं l जान-पहचान होने पर यदि एक समय पैसे कम पड़ गए या लाना भूल गए तो ऐसी दशा में उधार भी आसानी से मिल जाता है l  अच्छे सम्बन्ध होने पर घटिया सामान मिलने की सम्भावना भी समाप्त हो जाती है l

 

4.     एक समय आप यह सवाल कर सकते हैं कि हमारे भाई को तो ग्राहक के रूप में हमारी जरूरत नहीं है, उसके पास पैसा बहुत है या उसमें अहंकार बहुत है या वह दाम भी औरों से ज्यादा लगाताहै व माल भी घटिया  देता है !  मगर सच्चाई यह नहीं होती l अगर हम दुकानदार हों और यही बात हम स्वयं से पूछें तो क्या सही मिलेगी l आपका जवाब नहीं में ही होगा l हाँ इतना जरुर है कि कुछ तो यह हमारे मन की सोच हो जाती है व  कुछ अपने भाई में भी कमी होती है l मगर सोचने की बात है कि दूर रहकर क्या यह समस्या दूर हो जाएगी –कभी नहीं l  यह समस्या तो तब हल होगी जब उसके ज्यादा से ज्यादा पास आएँगे, उसे अपनेपन में समझाएंगे, और अगर हमही नहीं उसे समझाएंगे, तो दूसरा कौन समझाएगा l हमने अपने भाई को फेल नहीं करना है, कामयाब करना है, उसके बच्चों को भी समाज में जीने का, रोटी खाने का, अच्छी पढाई करने का  हक है, उसे भी  पैरों पर खड़ा करना है, उसे भी अच्छा नागरिक बनाना है l उसे भी दुनियांदारी का ज्ञान कराना है l  और यदि एक भाई से विचार नहीं भी मिल रहे तो अपने अन्य भाई बहुत हैं, उनसे ही  सामान खरीद  लो l   अपनापन तो यही  कहता है कि भाई जब सामान आप से खरीदना है तो सामान भी सही क्वालिटी का दो व रेट बाजार भाव से कम नहीं लगाते, तो बाजार भाव से तो लगाना ही पड़ेगा l

 

5.    इसके लिए दुकानदार भाई को अपने मन में एक संकल्प करना होगा कि मैंने अपने भाई के बिल राशि पर ABC डिस्काउंट देना ही देना है l  दुसरे वह बिल वाउचर पर जहाँ ॐ लिखते हैं उसके साथ  ABC छपा लें व  दूकान पर एक ABC का स्टीकर भी लगालें जो सबको दिखाई भी दे l इससे अपने सभी भाई अपनी जरूरत का सामान लेने वहीं आएँगे व अन्य सभी लाभ भी मिलेंगे l

 

6.     इस क्लब की सदस्यता एक सामूहिक दायित्व है l  इसकी सदस्यता लेने वाला यह संकल्प करेगा कि मैं या मेरा परिवार जो भी सामान खरीदेंगे, सर्वप्रथम अपने भाई की दूकान से ही खरीदेंगे या अपने भाई  की ही दूकान  से खरीदने की पूरी-पूरी कोशिश रहेगी l उधर दूसरी और दुकानदार भाई उस खरीददारी के बिल की पूरी राशि अपने उस ग्राहक से प्राप्त करेगा और उस राशि के ½% या कम के बराबर राशि अपनेसमाज को दान में देगा l यदि वह सौदा ऐसा है कि बिल की राशी बड़ी है व लाभ का प्रतिशत(margin) कम है तो कम से कम एक सौरुपए(Rs.100/-) कीराशि समाज कोदान के रूप में देगा l    इस बात को उदाहरण के तौर पर ऐसे  समझा जा सकता है  –  माना अपने वैश्य भाई को बेचे गए सामान का बिल 2,800/- का बनता है, तो दूकानदार भाई बिल की पूरी राशि 2,800/- ग्राहक से प्राप्त करेगा  व ½% की दर से 14/- रुपए समाज के गुल्लक में डालेगा l  यदि यह सौदा  एक लाख रुपए का है व इसमें लाभ की प्रतिशत 1% या कम ही है, तो ऊपर वाले फार्मूले के हिसाब से तो 500/- दान के बनते हैं, परन्तु कम margin की स्थिति में दुकानदार भाई कम से कम 100/- रुपए तो समाज के दान पात्र में डाले l यह उस की श्रद्धा पर निर्भर करता है l इससे अपने भाईकी दुकानदारी भी हो गई, आपसी लेनदेन भी बढ़ा व कुछ अपनेपन में समाज हित पूर्ति भी हो गई l दुकानदार  भाई अपने मन में यह समझ ले कि मेरी  यह बिक्री मेरे अपने भाई की वजह से आज अतिरिक्त बिक्री हुई है व मैंने इससे अपनेपन में आने के कारण कुछ तो कमाया  भी है व अगर इस अतिरिक्तआमदनी में से कुछ अंशदान में भी चला गया तो यह भी समाज के ही हित में ही लगेगाl अगर अपना कोई भाई ग्राहक के रूप में आता है और वह यह पूछता है कि आप ABC के  सदस्य हो, तो दुकानदार भाई सहर्ष बताए कि हाँ हम मेम्बर हैं व उसकी सदस्यता को ऑनर करते हैं l ऐसा होने से वह तो सहर्ष सामान खरीदेगा ही, औरों को भी उस दूकान पर आने के लिए कहेगा l बूंद बूंद करके  दूकान भी ग्राहकों से भर जायेगी व दान पात्र भी भर जाएगा l 

 

7.     दुकानदार भाई को यह बात अपने मन में समझनी होगी कि अगर उसकी दिनभर की बिक्री में से मात्र 10,000/- या 50,000/- की बिक्री अपनेपन के कारण हुई है व उसने उसमें 5% की दर से 500/- या 2,500/- रु.लाभ कमाया है जिसमें से वह बिक्री का ½% की दर से 50/- या 250/- समाज हित के लिए दान में दे रहा है व फिर भी उसे 450/- या 2,250/- रु.तो बचते ही हैं, जो केवल अपनेपन के कारण बचे हैं l इससे अपने दुकानदार  भाई को भी अतिरिक्त लाभ हुआ है व समाज को भी इससे आमदनी हो जाती है l  इस प्रकार दुकानदार भाई साल भर में समाज को दी गई दान की इस राशी से आयकर की धारा 80-G के तहत छुट  मिल  जाती है (बशर्ते कि संस्था को धारा 80-G में छुट क्लेम करने की अनुमति मिली हो, प्रयास जारी हैं, छुट मिल जायेगी) l ऐसे इस दान से दूकानदार भाई को यह खुशी होगी कि मेरे अपने भाई नए नए ग्राहक के  रूप में  मेरी दूकान पर आ रहे हैं व बिक्री के अतिरिक्त आमदनी भी बढ़ रही है l

 

8.      अपने भाई की दुकान से सामान खरीदने में ही हमारी शान है, अपनी इज्जत बढती है, अपनों को रोजगार मिलता है, अपनों से परिचय बढ़ता है, अपनों के साथ साथ दूसरों में भी एक अच्छा    संदेश (मैसेज)  जाता है l   अनन्य लोगों में भी यह चर्चा का विषय बन जाता है कि अब तो वैश्य समाज के लोग एक हो गए हैं, अधिकतरअपनों से हीबातचीत करते मिलेंगे, अपनों के पास हीबैठे मिलेंगे व अपनों से ही सामान खरीदते हुए मिलेंगे l  इससे आपसी सम्बन्धों का विकास होता है, एक दुसरे के समीप आते हैं, अपनों से परिचय बढ़ता है,एक दुसरे के गुणों का पता चलता है कि अपना कौन आदमी क्या काम  करता है, वह हमारे किस काम आ सकता है l   बढ़ा  हुआ परिचय आगे चलकर सगाई-विवाह तक के करने में आसानी रहती है l  हम आपस में अनजान न होकर एक हो जाते हैं चूँकि सभी से तालमेल बढाना व घुलमिल जाना तो हमारे स्वभाव में है l एक दुसरे  के दुःख सुख में  काम आने का राहखुलजाता है l कभी बाज़ार में कोई गलत सरकारी नीति लागु होती है, या दंगाई हमला करते हैं या कोई ग्राहक ही नाजायज तंग  करता है तोआपसी एकता से हम उससे आसानी से  निबट सकते हैं l

 

9.       यह सब अनन्य समाज में पहले से ही हो रहा है, बस देखने व समझने की बात है l अगर गौर नहीं किया है तो अब कर लेना l अगर आज अनन्य समाज का कोई व्यक्ति आढत या कपड़े की दूकान कर लेता है तो  उसकी बिरादरी के सभी लोग ग्राहक के रूप में वहीं जाते हैं व दावा करते हैं कि जब अपने भाई की दूकान है तो हम दूसरी दूकान पर क्यों जाएं l आपस में एक दुसरे को वहीं जाने की कहते भी हैं l हमें उनसे शिक्षा लेने की जरूरत है lआप प्रैक्टिकल में देखोगे कि जो बात यहाँ करने को कही जा रही है, यह कोई नई बात नहीं है l  अन्य लगभग सभी लोग यह करते हैं और उनसे यह बात आसानी से सीखी भी जा सकती है l   प्रैक्टिकल जीवन में आप को इस तरह के अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे l  एक रिक्शा वाला या अन्य सवारी वाला भी अपने मुहँ मांगे दाम से कम इसी लिए नहीं करता कि दाम कम करने से क्या फायदा,  सवारी तो  सस्ते में अपने घर चली जाएगी,  दाम कम करने में हमें ही नुक्सान होगा l  ऐसे सब लोग आपसी फूट की बजाए आपस में एकता रखते हैं व सभी एक ही रेट मांगते हैं व सवारी को मजबूर होकर देना भी   पड़ता है l    मुहँमांगे दाम सवारी एक को नहीं देगी, तो उसके दुसरे भाई को देगी, मिलेंगे तो अपने भाई को ही l वे भी यह जानते हैं कि हम एक रहेंगे तो हम अपनी बात दुसरों से मनवा सकते हैं l यह दुनियां की कटु सच्चाई  है कि एकता में बल है, चाहे वह एकता चीटियों में हो, मधुमखियों में हो, कीट-पतंगों में हो या पशुओं में हो या मनुष्यों में हो l अकेले की कौन प्रवाह करता है व समूह की कोई भी अनदेखी नहीं कर सकता, क्योंकि  उसे  सामने समूह नजर आएगा l इस दुनियां में यह कभी नहीं  कहा गया कि कमजोर व्यक्ति ने भी कभी शासन किया है या शासन दिमागदार व्यक्ति ही करता है, हाँ ये बात निश्चित है कि सदा से ताकतवर प्राणी ही राज  करता आया है l     जय संगठन  l

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