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संस्था की कार्यप्रणाली

संस्था की कार्य प्रणाली–

  1. संस्था की कार्य प्रणाली को समझने से पूर्व इसकी संगठन प्रणाली को समझना आवश्यक है l सर्वप्रथमकुछ पुण्य आत्माओं, जो समस्त समाज व मानवता का भला चाहते हैं, के द्वारा अपने सद्प्रयासों के द्वारा यहसंस्था खड़ी की जाएगी l प्रथम केन्द्रीय प्रबन्धन बोर्ड (Think Tank) वनीचे की सभी संगठन इकाइयां प्रथम 3 वर्ष की अवधि के लिए अस्थाई (adhoc) आधार पर खड़ी की जाएंगी l राज्य स्तर तक प्रथम अवधि का कार्यकाल 3 वर्ष व मुख्यालय पर यह अवधि4 वर्ष की रहेगी l प्रथमअवधिमें जब संस्था का स्वरूप आ जाएगा, काम करने लगेगी, नीचे से ऊपर तक का ढांचा खड़ा हो जाएगा, मुख्यालय अपना कार्य ठीक से करने लगेगा, समाज के बीच अपनी बात पहुँचाने की पूरी कोशिश की जाएगी l दूसरी अवधि में सभी स्तर पर नीचे से ऊपर तक सभी कार्यकर्त्ताओं के बीच उनके काम व योग्यता के आधार पर (on the basis of performance)लोकतान्त्रिकढंग से चुनाव करवाकर संगठन इकाइयां खड़ी की जाएंगी l  सारा कार्य संविधान के अनुसार होगा व जहाँ policy making मेंअच्छे सुझाव आयेंगे, समाजहित में वहां आवश्यक संसोधन भी किए जाएंगे l
  2. समाज को संगठित करने के उद्देश्य कुछ ऐसी योजनाएं बनाई जाएंगी, जिनमें समाज के हर व्यक्ति का अधिकतम योगदान सम्भव हो सके l  प्रत्येक व्यक्ति/परिवार स्वयं को अपने संगठन से जुड़ा हुआ महसूस करे व स्वयं को इसका अभिन्न अंग समझे l प्रत्येक व्यक्ति/परिवार को संगठन की गतिविधियों में ज्यादा से ज्यादा भाग लेने व सहयोग करने का अवसर मिले, ज्यादा से ज्यादा एक दुसरे के सम्पर्क में आएं, एक दुसरे को जानें, समझें व आपस में सहयोग करें l
  3. संस्था का एक मुख्यालय होगा, जहांकेन्द्रीय प्रबन्धन बोर्ड संस्था को खड़ी करने से लेकर चलाने तक के बारे में आवश्यक सभी नीतियाँ बनाएगा, जिसेअपनी राज्य, जिला व स्थानीय स्तर की सभी इकाइयों के सहयोग से समाज में लागू किया जाएगा l  केन्द्रीय प्रबन्धन बोर्ड द्वारा“समाज को संगठित करने के लिए क्या क्या कार्य किए जाएं” की एक सूची बनाई जाएगी, जिसेकेन्द्रीय कार्य योजना (Central Action Plan) कहा जाएगाlसंस्था द्वारा किए जाने वाले कार्यों की विस्तृत सूचि अलग से पांच वर्षीय योजना के शीर्षक के तहत देखें l यह योजना पांचवर्षया इससे लम्बी अवधि की होगी, जिसेवार्षिक आधार पर बाँट कर योजनाबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा lप्रतिवर्ष कार्य करने के टारगेट तय किये जायेंगे व उन्हें पूरे मनोयोग से अपनी सभी स्तरों की इकाइयों के माध्यम से प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा lवर्ष के अंत में उपलब्धियों की समीक्षा की जाएगी व सभी की सलाह से आगे जो उचित होगा, कदम उठाया जाएगा l केन्द्रीय कार्यालय अपनी सभी स्तर कीइकाइयों के कामकाज की लगातार देखरेख  (monitoring) करती रहेगी व जहां कहीं मदद की जरूरत होगी, जिला व राज्य इकाइयों के माध्यम से मदद करेगी वइकाईको सक्षम बनाने हेतु केन्द्रीय इकाई स्वयं भी मदद करेगी l निचली इकाइयां अपने ऊपर वाले प्रबन्धन कार्यालय के साथ साथ केन्द्रीय कार्यालय को भी समय समय पर अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट भेजती रहेंगी l
  4. मुख्यालय द्वारा अपनी सभी इकाइयों को केन्द्रीय कार्य योजना अनुसार कार्य करने हेतु समान टारगेट दिए जायेंगे, जो सभी इकाइयों पर समान रूप से लागू होगा l  किए गए कार्यों की जिला एवम राज्य इकाइयों के सहयोग से समीक्षा की जायेगी व आवश्यकता अनुसार अगले कार्यक्रम में संसोधन किया जाएगा l  यथासम्भव प्रयास किया जाएगा किसंस्था अपने टारगेट्स कीप्राप्ति करते हुए प्रतिवर्ष सतत आगे बढ़े व 5 वर्ष के अंतराल के पश्चात यह अपनेआप को वैश्य समाज की एकमात्र प्रतिनिधि केन्द्रीय संस्था प्रमाणित करे l
  5. कार्यकर्त्ताओं को समय समय पर आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया जाएगा l उन्हें संस्था की संगठन व कार्य प्रणाली के बारे में भीपूरी जानकारी दी जाएगी l  समय समय पर दिए गए कार्य योजना(project) के बारे में आवश्यक जानकारी दी जाएगी l फिल्ड से प्राप्त सभी रिपोर्ट्स  मुख्यालय पर संकलित की जायेंगी, जो वर्ष के अंत में समाज के समक्ष उपलब्धियों के रूप में प्रस्तुत की जायेंगी l
  6. डिजिटल माध्यम से संस्था की वार्षिक रिपोर्ट सभी तक प्रेषित की जायेगी lवार्षिक कलेंडर के माध्यम सेभी संस्था का पूरा परिचय- संगठन प्रणाली, कार्य प्रणाली, टारगेट, उपलब्धियांप्रत्येक घर तक पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा lसभी के सुझावों का सदैव स्वागत रहेगा l
  7. संस्था की जो इकाई दिए गए टारगेट्स को दिए गए समय मेंया उससे पूर्व प्राप्त कर लेगी, उसेहाईलाइट किया जाएगा व उचित सम्मान से भी पुरस्कृत किया जाएगा l
  8. संस्था के कार्य करने का आधार “सब का साथ सब का विकास” रहेगा l  संस्थासमाज द्वारा किए गए सहयोग का प्रतिबिम्ब है lयह समूचे वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था है जो अनन्य समाज व सरकार के सामने अपने हितों के लिए आवाज उठाएगी l  समाज मिलकर इसे जैसा बनाना चाहेगा, यहवैसा ही बनेगी l जिस प्रकारएक चक्रवर्ती सम्राट का प्रतिनिधि (दूत) जहां भी जाता है, वहां उसे मिनी सम्राट के रूप में ही देखा या जाना जाता है, चूँकि वह चक्रवर्ती सम्राट का प्रतिनिधित्व कर रहा है,उसी प्रकार यह संस्था भी अपने महान वैश्य समाज की प्रतिनिधि संस्था का कार्य करेगी l अगर आप सभी मिलकर अपनीइस संस्था को जितना शक्तिशाली बनाएंगे, यह उतना ही प्रभावशाली तरीके से आप का प्रतिनिधित्व करेगी व आपके हितों की रक्षा करने में सक्षम होगी l

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